Wednesday, November 14, 2012

एक नज़्म

ये झूलता साया
साँप है
या रस्सी ?

ये जानने से पहले
क्या ये मानना होगा
के एक है
और इक नहीं है ?

क्या मानना,
       जानने की पहली शर्त है?

और जानना,
       मानने की महज़ तसदीक़ भर है?

तो उसे
जिसे जाना नहीं जाता
माना कैसे जाए?




Saturday, October 27, 2012

कोई है?

अगर सफ़र पर निकल रहे हो
तो पीछे मुड़कर क्या देखते हो

तुम्हारे पीछे
               कोई नहीं है

अगर सफ़र पर निकल चुके हो
तो आगे बढ़ कर क्या सोचते हो

तुम्हारे आगे
                 कोई नहीं है

अगर सफ़र में ही थक रहे हो
तो जान लो ये थकन भरम है

के इस सफ़र में
                      कोई नहीं है
             

Sunday, September 2, 2012

Kun - कुन

[ Kun ]

Jangal se shaam ja rahi hai
andhera gehra raha hai
aur gehra
aur gehra
aur
ab jab
kuch nazar aata nahin hai

gufa mein
    tanha baitha
             aadam
mahsoos karta hai

( koi hai, jo is andhere mein bhi mujh ko dekhta hai )



[ कुन ]

जंगल से शाम जा रही है
अँधेरा गहरा रहा है
और गहरा
और गहरा
और
अब जब
कुछ नज़र आता नहीं है

गुफा में
   तन्हा बैठा
             आदम 
महसूस करता है

( कोई है, जो इस अँधेरे में भी मुझ को देखता है )


Rafaqat - [रफाक़त]



[Rafaqat]
Hum ne
basaye ghar
banaye darwaze
lagaai.n kundiya.n
taange taale

aur ab hum
nikal aaye hain galiyon mein
koshish kar rahein hain
ke apni chabhiyon se
doosro.n ke ghar mein dakhil ho sakein


[रफाक़त]

हम ने
बसाए घर
बनाये दरवाज़े
लगायीं कुण्डियाँ
टाँगे ताले

और, अब हम
निकल आयें हैं गलियों में
कोशिश कर रहे हैं
के अपनी चाभियों से
दूसरों के घर में दाख़िल हो सकें 

Saturday, July 28, 2012

Pyaar

daadi
har raat
aik hi kahani sunati thi

bache
sunte the
khush bhi hote the
so bhi jaate the

aik raat
achaanak
kahani purani ho gayi


[प्यार]

दादी
हर रात
एक ही कहानी सुनती थी

बच्चे
सुनते थे
खुश भी होते थे
सो भी जाते थे

इक रात
अचानक
कहानी पुरानी हो गयी

....
...


Disclaimer

main aksar bakwaas karta paya jaata hun
mujhe sanjeedgai se n liya jaye

mujhe suna jaye
aur sun kar bhula diya jaye

aur agar n bhula paya jaye
to muaaf kar diya jaye



मैं अक्सर बकवास करता पाया जाता हूँ
मुझे संजीदगी से न लिया जाये

मुझे सुना जाए
सुन कर भुला दिया जाये

और अगर न भुला पाया जाये
तो मुआफ कर दिया जाये

....
...

Jangal

Hum
jab jangal se nikal kar
basti mein aaye
to apne nange badan dekhar
sharma gaye

aur phir
hum ne tajveez ki :
"khud ko dhako"
"ek dooje se khud ko chupate phiro"

"aur agar"
"jangloN ke taraf
                  lautna ho
                            kabhi to suno"
"hai ek rasta"
"jo khulta hai, band darwaze ke peeche"


हम
जब जंगल से निकल कर
बस्ती में आये
तो अपने नंगे बदन देखकर
शरमा गए

और फिर
हमने तजवीज़ की :
"खुद को ढ़को"
"एक दूजे से खुद को छुपाते फिरो"

"और अगर"
"जंगलों की तरफ
                 लौटना हो
                           कभी तो सुनो"

"है एक रस्ता"
"जो खुलता है बंद दरवाज़े के पीछे"

.....
..

Wednesday, April 18, 2012

Aik nazm


gayi raat
gehri neend mein tha

achanak pyaas lagi
uth baitha

ghar mein dekha
pani ki
         ik boond nahin thi

waapis bistar par laut aaya
aankein kas kar band kar leeN

aur chal diya
khwaboN mein dariya dhoondhne

Aik Nazm


jhulasta regzaar
bhatakti pyaas
door...
       ...jhilmilata ik saraab

jo nazar mein aa raha hai
woh samajh mein aa raha hai
dar haqeeqat,
kuch nahin
aik andaza hai bas!

har aik sach,
              apne,
                    jhuTh-laye jaane ka munt'zir hai

Taboo


aaine ke saamne
khud ko tanha pa
       achaanak
kya ubhar aaya hai aankhoN mein?

dekho
ye chaT-paTata aks
                                baahar aana chahta hai

ruko!!!
(pehle darwaza to band kar lo)

Neat

kal raat,
gali mein
            billi ro eahi thi
main ne
           T.V ki aawaaz badha di


aaj,
TV kharaab ho gaya hai
aur
      gali mein
                   billi bhi nahin hai

दोहे

गले लगा लो  प्यार से, खींचो मेरे कान
तुम ने मेरा दुःख सुना, तुम मेरे भगवान

सुन्दर सपना देखते, बीती सारी रात
सुबः चिड़िया उड़ गयी, याद न आई बात

दूर देस परदेस में, लोग मिले अनजान
दुःख सुख बांटा चल दिए, फिर रस्ता सुनसान

धूप के पाँव थक गए, जा चढ़ बैठी नीम
बैठी बैठी सो रही, टेक लगाये जीम

मैं उलझा था आप में, उस ने खींची डोर
उस के मन में जा बसा, मेरे मन का चोर

सब जग सोता पड़ गया, इक मैं जागूं रैन
सूने तन में गूंजता, गूंगे मन का बैन

हम को जिसकी खोज थी, उसका पता ना था
और वो हम को खोजता, उस को पता ना था

अबस रेत को सींचता, निचुड़ निचुड़ आकास
छुआ छूत का रोग है, प्यास जन्मती प्यास

मन बिरले बैराग की, कैसी पकड़ी राह
जिससे चाहे छूटना, उसको भर ले बांह

जिस को जिस से नेह था, उस को वही अज़ाब
वाइज़ मैकश हो गया, हम से छुटि शराब

मैख़ाने के द्वार पर, रिंदा निरूउपाए
सौगंध ऊपर लालसा, जी से हूक उठाये

सूखी सूखी नींद पर, गीली गीली ओस
शब भर छत पर चाँद ने, खूब किया अफ़सोस